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विषय नं. 26 - स्वर्ग के लिए योग्याता



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 71
श्लोक

श्रद्धावाननसूयश्च श्रृणुयादपि यो नरः । सोऽपि मुक्तः शुभाँल्लोकान्प्राप्नुयात्पुण्यकर्मणाम् ॥71॥

श्रद्धावान् अनसूयः च शृणुयात् अपि यः नरः ।
सः अपि मुक्तः शुभान् लोकान् प्राप्नुयात् पुण्य कर्मणाम् ।। ७१ ।।

शब्दार्थ

(अपि) नि:सन्देह (य:) जो (नरः) मनुष्य (श्रद्धावान्) एक ईश्वर पर श्रद्धा रखते हुए (च) और (अनसूय:) ईश्वर से इर्ष्या न रखते हुए, (शृणुयात्) (इस ज्ञान को) सुनेगा, (सः) वह (मुक्त:) (संसार में भय व शोक से) मुक्त हो जाएगा (कर्मणाम्) (और मरने के बाद स्वर्ग में) भलाई वाले कर्म करने वालों के (शुभान्) पवित्र और अच्छे (लोकान्) धाम को (स्वर्ग को) (अपि) भी (प्राप्नुयात्) पाएगा।

अनुवाद

निःसन्देह जो मनुष्य एक ईश्वर पर श्रद्धा रखते हुए और ईश्वर से इर्ष्या न रखते हुए, इस ज्ञान को सुनेगा, वह संसार में भय व शोक से मुक्त हो जाएगा और मरने के बाद स्वर्ग में भलाई वाले कर्म करने वालों के पवित्र और अच्छे धाम (स्वर्ग) को भी पाएगा।