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विषय नं. 27 - नरक का वर्णने



अध्याय नं. 4 ,श्लोक नं. 40
श्लोक

अज्ञश्चश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति ।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः ॥40॥

अज्ञः च अश्रद्दधानः च संशय आत्मा विनश्यति । न अयम् लोकः अस्ति न परः न सुखम् संशय आत्मनः ।।४०॥

शब्दार्थ

(अज्ञः) वह जिसे ईश्वरीय ग्रंथ का ज्ञान नही (च) और (वह) (अश्रद्धानः) जिसकी ईश्वर में श्रद्धा नहीं (च) और (संशय आत्मा) वह लोग जो ईश्वर और उसके अवतारीत ज्ञान में संदेह (शक) करते हैं। (विनश्यति) उनका विनाश होगा (संशय आत्मनः) ऐसे संदेह करने वाले • लोगों का (न) न (अयम् लोक) इस लोक (पृथ्वी) में (भला होगा) (न परः) न अन्य लोक (में भला होगा) (न सुखम्) (और इन्हें) न कहीं सुख मिलेगा।

अनुवाद

वह जिसे ईश्वरीय ग्रंथ का ज्ञान नहीं और (वह) जिसकी ईश्वर में श्रद्धा नहीं। और वह लोग जो ईश्वर और उसके अवतारित ज्ञान में संदेह (शक) करते हैं। उनका विनाश होगा। ऐसे संदेह करने वाले लोगों का न इस लोक ( पृथ्वी) में (भला होगा) न अन्य लोक ( में भला होगा) (और इन्हें) न कहीं सुख मिलेगा।

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में मानवजाति से कहा कि, “क्या मैंने तुम्हें आदेश नही दिया था, कि हे आदम की सन्तानों, तुम शैतान की बन्दगी न करो, निश्चय ही वह तुम्हारा खुला दुश्मन है। और यह की मेरी ही बन्दगी करो। यही सीधा मार्ग है। और उसने तो तुममें से एक भारी गिरोह (समुदाय) को गुमराह कर दिया है। क्या तुम बुद्धि नहीं रखते थे ? यह वही नरक है जिसकी तुम्हें धमकी दी जाती थी। तुमने जो एक ईश्वर में श्रद्धा नहीं रखा था तो उसके बदले में आज इस नरक का इंधन बनो।” (सूरे यासीन-३६, आयत-६०-६४)