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विषय नं. 27 - नरक का वर्णने



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 21
श्लोक

ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालंक्षीणे पुण्य मर्त्यलोकं विशन्ति। एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते ||21||

ते तम् भुक्त्वा स्वर्ग लोकम् विशालम् क्षीणे पुण्ये मर्त्य-लोकम् विशन्ति । एराम् त्रयी धर्मम् अनुप्रपन्नाः गत आगतम् काम कामाः लभन्ते ।।२१।।

शब्दार्थ

(त्रयी) तीनों (वेदों में बताए गए) (धर्मम्) धर्म के नियमों का (अनुप्रपन्नाः) पालन करने वाले ( पुण्ये) पुण्य कर्मों में (क्षीणे) कमी के कारण (मृत्यु लोक ) मृत्यु लोक (नर्क) में (विशान्ति) गिराए जाते हैं (एवम्) उसके बाद दण्ड की अवधि पूरी करने के बाद (ते) यह लोग (तम) उस (विशालम्) विशाल (स्वर्ग लोकम्) स्वर्ग लोक का (भुक्त्वा) आनंद लेते हैं (काम कामाः) अपनी इच्छाओं की पूर्ती में लगे हुए लोगों को (लाभन्ते) मिलता है। वह स्थान (गत आगतम्) जहाँ आना-जाना लगा रहता है।

अनुवाद

तीनों वेदों में बताए गए धर्म के नियमों का पालन करने वाले, पुण्य कर्मों में कमी के कारण मृत्यु लोक (नरक) में गिराए जाते हैं। उसके बाद दण्ड की अवधि पूरी करने के बाद यह लोग उस विशाल स्वर्ग लोक का आनंद लेते हैं। और अपनी इच्छाओं की पूर्ती में लगे हुए लोगों को मिलता है वह स्थान, जहाँ आना-जाना लगा रहता है। (अर्थात नर्क में जलकर अस्तित्व मिट जाता है और दण्ड की अवधि पूरी करने के लिए फिर अस्तित्व में आते हैं।)