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विषय नं. 27 - नरक का वर्णने



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 24
श्लोक

अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च ।
न तुमामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते ॥24॥

अहम् हि सर्व यज्ञानाम् भोक्ता च प्रभुः एव च । न तु माम् अभिजानन्ति तत्त्वेन अतः च्यवन्ति ते ।।२४।।

शब्दार्थ

(हि) नि:संदेह! (अहम) मैं ही वह ईश्वर हूँ (भोक्ता) जिसके लिए (सर्व) सारी (यज्ञानाम्) प्रार्थनाएं की जाती हैं। (ते) किन्तु (जो) (तत्त्वेन) इस सत्य को (न) नहीं (अभिजानन्ति) जानते (ते) वह (अतः) (इस अज्ञानता) के कारण (च्यवन्ति ) ( नर्क में) गिराए जाते हैं।

अनुवाद

नि:संदेह! मैं ही वह ईश्वर हूँ जिसके लिए सारी प्रार्थनाएं की जाती है। किन्तु (जो ) इस सत्य को नहीं जानते, वह इस अज्ञानता के कारण नर्क में गिराए जाते हैं।