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विषय नं. 27 - नरक का वर्णने



अध्याय नं. 16 ,श्लोक नं. 20
श्लोक

आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि |
मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम् ।।20।।

आसुरीम् योनिम् आपन्नाः मूढाः जन्मनि जन्मनि ।
माम् अप्राप्य एव कौन्तेय ततः यान्ति अधमाम् गतिम् ।।२०।।

शब्दार्थ

(मूढा) यह मूर्ख लोग (आसूरीम् योनिम्) असुरों के वंश में (जन्मनि जन्मनि) हर मृत्यु के बाद के जीवन (आपन्ना) पाते हैं (और) (अधमाम् गतिम्) नर्क के सबसे निचले भाग तक (यान्ति) चले जाते हैं। (तत:) इस तरह (एव) नि:संदेह (कौन्तेय) हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन) (माम) (यह) मुझे (अप्राप्य) कभी प्राप्त नहीं कर पाते।

अनुवाद

यह मूर्ख लोग असुरों के वंश में हर मृत्यु के बाद जीवन पाते हैं और नर्क के सबसे निचले भाग तक चले जाते है। इस तरह नि:संदेह, हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन)! यह मुझे कभी प्राप्त नहीं कर पाते।

नोट

पवित्र कुरआन में लिखा है कि, “जो ईश्वर से ड़रता है वह ईश्वर के आदेशों का पालन करेगा। है जो ईश्वर से नहीं डरता वह अभागा आदेश नहीं मानेगा। यह प्रलय के दिन बड़ी आग में डाला जाएगा। फिर वह वहाँ न मरेगा न जिएगा। निस्संदेह! वह सफल हुआ जो पवित्र हुआ और अपने ईश्वर के नाम का जाप करता रहा और नमाज़ पढ़ता रहा। मगर तुम लोग तो सांसारिक जीवन को महत्त्व देते हो। जबकि अन्य लोक का जीवन अमर जीवन है। यह बात पहले के ग्रंथों में लिखी हुई है। यानी इब्राहीम और मूसा के ग्रन्थों में" (सूरे अल-आला-८७, आयत १०-१९)