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विषय नं. 28 - देवता



अध्याय नं. 7 ,श्लोक नं. 20
श्लोक

कामैस्तैस्तैर्हतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः ।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ॥20॥

कामैः तैः तैः हृतज्ञानाः प्रपद्यन्ते अन्य देवताः ।
तम् तम् नियमम् आस्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ।।२०।।

शब्दार्थ

(कामै) (केवल) अपनी इच्छाओं की पूर्ति के प्रयास में (तैतै) जो लोग (हत्व ज्ञाना) ईश्वर के दिव्य ज्ञान से दूर हो गए (अन्य ) (वह) दूसरे (देवता) देवताओं की (प्रपधन्ते) शरण लेते हैं ( उनकी प्रार्थना करते हैं) (तम् तम्) वह लोग ( स्वयथा ) स्वयम् (आस्थाय) देवताओं की प्रार्थना के (नियमम्) नियम बनाते हैं (प्रकृत्या नियता) जैसे ईश्वर ने अपनी प्रार्थना के नियम बनाए हैं।

अनुवाद

(केवल) अपनी इच्छाओं की पूर्ति के प्रयास में जो लोग ईश्वर के दिव्य ज्ञान से दूर हो गए हैं। (वह) दूसरे देवताओं की शरण लेते हैं (उनकी प्रार्थना करते हैं)। वह लोग स्वयम् देवताओं की प्रार्थना के नियम बनाते हैं। जैसे ईश्वर ने अपनी प्रार्थना के नियम बनाए हैं।

नोट

पवित्र कुरआन में ईश्वर ने पैगम्बर मुहम्मद (स.) से कहा कि जो ईश्वर के अतिरिक्त दुसरों की पूजा करते हैं। उनसे पूछो कि क्या तुम जिन्हें ईश्वर ठहराते हो उनमें कोई है जो पहली बार ( प्रकृति की) रचना करता है और फिर उसे दोबारा भी पैदा करे? कहो, ईश्वर ही पहली बार पैदा करता है, फिर वही उसकी पुनरावृत्ती करेगा। (इस सत्य को जानने के बाद) फिर तुम कहाँ से उलटे भटके चले जा रहे हो। (हे मुहम्मद (स.) इनसे) कहो, क्या तुम जिन्हें ईश्वर ठहराते हो उनमें कोई है, जो सत्य का मार्ग दिखा सकता हो? ईश्वर ही सत्य के मार्ग पर डालता है। फिर जो सत्य का मार्ग दिखाता हो वह इस बात का ज्यादा हकदार है कि उसका अनुकरण किया जाए, या वह जो स्वयं ही मार्ग न पाए जब तक कि उसे मार्ग न दिखाया जाए, तो तुम्हें क्या हो गया है? तुम कैसे (किसी की प्रार्थना का) निर्णय करते हो? और उनमें से अधिकतर लोग तो बस अटकल (अंदाजा, अनुमान) पर चलते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि अटकल सत्य की तुलना में कुछ भी लाभ नहीं देगा। जो कुछ ये कर रहे हैं ईश्वर उसे भली-भाँति जानता है। और यह कुरआन ऐसा नहीं कि ईश्वर के अतिरिक्त इसे कोई और बना लाए। यह ईश्वर की वाणी है। जो अवतरित ग्रंथ इससे पहले अवतरित हुए उनकी पुष्टि करता है और उन ही ग्रंथों का इसमें वर्णन है। इसमें कोई संदेह नहीं कि कुरआन ईश्वर ने अवतरित किया है। (सूरे यूनुस- १०, आयत-३७)