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विषय नं. 28 - देवता



अध्याय नं. 7 ,श्लोक नं. 21
श्लोक

यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति ।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् ॥21॥

यः यः याम् याम् तनुम् भक्तः श्रद्धया अर्चितुम् इच्छति ।
तस्य तस्य अचलाम् श्रद्धाम् ताम् एव विदधामि अहम् ।।२१।।

शब्दार्थ

(यः यः) जो जो (भक्त) (देवताओं के) भक्त (याम् याम् ) जिस जिस (तमुम) देवता में ( श्रद्धया) श्रद्धा रखते हैं (अर्चितुम) और उनकी भक्ति की (इच्छति) इच्छा करते हैं (अहम) मैं (ईश्वर) एवं (निःसंदेह) (तस्य तस्य) उन (भक्तों के) (श्रद्धाय) श्रद्धा को (ताम् ) उन देवताओं पर (अचलाम्) और दृढ़ (मज़बूत) (विदधामि ) कर देता हूँ।

अनुवाद

जो जो (देवताओं के) भक्त जिस जिस देवता में श्रद्धा रखते हैं और उनकी भक्ति की इच्छा करते हैं। मैं (ईश्वर) नि:संदेह उन (भक्तों के) श्रद्धा को उन देवताओं पर और दृढ़ कर देता हूँ।

नोट

पवित्र कुरआन में ईश्वर ने कहा, “और जो कोई इसके बाद भी कि मार्गदर्शन खुलकर उसके सामने आ गया है, पैगम्बर का विरोध करेगा और एक ईश्वर में श्रद्धा रखने वालों (ईमानवालों) के मार्ग के सिवा किसी और मार्ग का अनुगमन करेगा, हम उसे उसी के हवाले करेंगे जिसको उसने अपनाया और उसे नरक में झोकेंगे। और वह बुरा ठिकाना है।'' (सूरे अन निसा-४, आयत-११५) ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा कि, उनके दिलों में एक रोग है जिसे ईश्वर ने और अधिक बढ़ा दिया, और जो झूठ वे बोलते हैं, उनके फलस्वरुप उनके लिए दर्दनाक सज़ा (दंड) है। (सूरे अल बकर २, आयत १०)