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विषय नं. 28 - देवता



अध्याय नं. 7 ,श्लोक नं. 22
श्लोक

स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते ।
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान् ॥22॥

सः तया श्रद्धा युक्तः तस्य आराधनम् ईहते। लभते च ततः कामान् मया एव विहितान् हि तान् ।।२२।।

शब्दार्थ

(सः) वह (भक्त) ( तया) उस (देवता की) ( श्रद्धा युक्तः) पूरी श्रद्धा के साथ (ईहते) (अपनी इच्छाओं के पूरा होने) की अपेक्षा के साथ (तस्य आराधनम) भक्ति करता है (च) और (ततः) उस (देवता से वह ) ( कामान्) अपनी इच्छा की वस्तु (लाभते) प्राप्त भी कर लेता है (एवं) किन्तु (सत्य यह है कि) (तान्) उसे ( मया ) मेरे द्वारा ही (विहितान्) (उसके इच्छा की सारी वस्तुएँ) दी जाती हैं।

अनुवाद

वह (भक्त) उस (देवता की) पूरी श्रद्धा के साथ (अपनी इच्छाओं के पूरा होने) की अपेक्षा के साथ भक्ति करता है और उस (देवता से वह) अपनी इच्छा की वस्तु प्राप्त भी कर लेता है, किन्तु (सत्य यह है कि) उसे मेरे द्वारा ही (उसके इच्छा की सारी वस्तुएँ) दी जाती हैं।