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विषय नं. 28 - देवता



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 20
श्लोक

त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापायज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते।
ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोकमश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान् ॥20॥

त्रै विद्याः माम् सोम-पाः पूत पापा: यज्ञैः इष्ट्वा स्व-गतिम् प्रार्थयन्ते । ते पुण्यम् आसाद्य सुर-इन्द्र लोकम् अश्नन्ति दिव्यान् दिवि देव-भोगान् ।।२०।।

शब्दार्थ

(त्रै-विद्याः) तीनों वेदों के अनुसार (सोम पाः) सोम रस के लिए (और) (स्व-गतिम्) श्रेष्ठ लक्ष, स्वर्ग के लिए, (माम्) मेरी (यज्ञैः इष्ट्वा) प्रार्थना करते हैं और पुण्य कर्म करते हैं (पूत पापाः) और पापों से पवित्र हो जाते हैं (पुण्यम् आसाद्य) फिर पुण्य कर्मों के फलस्वरुप (दिवि) स्वर्ग में (सुर-इन्द्र) महान देवताओं के (लोकम्) लोक में (देव-भोगान्) देवताओं द्वारा दी गई आनंद का अनुभव दिलाने वाली वस्तुओं से (दिव्यान) दिव्य (अश्नन्ति) आनंद का अनुभव करते हैं।

अनुवाद

(पहला समूह जो ईश्वर की प्रार्थना में व्यस्त रहता हैं वह) तीनों वेदों के अनुसार सोम रस के लिए (और) श्रेष्ठ लक्ष, स्वर्ग के लिए, मेरी प्रार्थना करते हैं और पुण्य कर्म करते हैं और पापों से पवित्र हो जाते हैं। फिर पुण्य कर्मों के फलस्वरुप स्वर्ग में महान देवताओं के लोक में देवताओं द्वारा दी गई आनंद का अनुभव दिलाने वाली वस्तुओं से दिव्य आनंद का अनुभव करते हैं।

नोट

स्वर्ग का वर्णन पवित्र कुरआन में इस प्रकार है; “उस स्वर्ग का वर्णन यह है जिसके मिलने का वादा (ईश्वर से) डर रखने वालों से किया गया है। उसमें पानी की नहरें हैं जिसमें सड़ांध नहीं और दूध की नहरें हैं जिनका मजा नहीं बदलता। और शराब की नहरें हैं जो पीने वालों के लिए स्वादिष्ट है और साफ सुथरे शहद की नहरें हैं। और उनके लिए वहाँ हर प्रकार के फल हैं। और ईश्वर की ओर से क्षमा है (अर्थात ईश्वर अब उनसे कभी क्रोधित नहीं होगा।) (सुरे-मुहम्मद (४७) आयत-१५)