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विषय नं. 30 - धार्मिक ज्ञान का महत्व



अध्याय नं. 4 ,श्लोक नं. 2
श्लोक

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः । स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ॥2॥

एवम् परम्परा प्राप्तम् इमम् राजऋषयः विदुः । सः कालेन इह महता योगः नष्टः परन्तप ।। २ ।।

शब्दार्थ

( परन्तप ) हे अर्जुन ( एवम् ) इस तरह (परम्परा) (गुरु से छात्र को दी जाने वाली शिक्षा की) परंपरा के द्वारा (महता) यह महान (और) (योग) दिव्य ज्ञान (राज ऋषिय) राज ऋषियों ने भी (प्राप्तम्) प्राप्त किया। (विदुः) उसको जाना ( और उसके अनुसार राज किया ) ( कालेन)

अनुवाद

हे अर्जुन! इस तरह ( गुरु से छात्र को दी जाने वाली शिक्षा की) परंपरा के द्वारा यह महान (और) दिव्य ज्ञान राज-ऋषियों ने भी प्राप्त किया। उसको जाना (और उसके अनुसार राज

नोट

1. वह समुदाय जिनको अवतरीत ग्रंथ दिए गये थे (अर्थात इसाई और यहुदी) और शिर्क (संगम) करने वाले, यह लोग ईश्वर को मानने वाले नहीं थे जब तक उनके पास स्पष्ट प्रमाण न आ जाता । अर्थात ईश्वर के पैगंबर जो पवित्र (ग्रंथ के) पन्ने (पेज) पढ़ते हैं। जिनमें (स्पष्ट) आयातें (ईश्वर के आदेश) लिखे हैं। (और जब पैगंबर और स्पष्ट प्रमाण अर्थात ईश्वर के आदेश आ गए तो इसके बाद) वह समुदाय जिनको अवतरीत ग्रंथ दिए गए हैं, वह विवाद में (फूट में) पड़ गए। (ईश्वर ने उनको) यही आदेश दिया था कि नि:स्वार्थ होकर ईश्वर की प्रार्थना करो और एकाग्र होकर नमाज़ पढ़ो और जकात (दान) दें। और यही शाश्वत (सनातन) धर्म है। (पवित्र कुरआन ९८:१-५) (नोट: आयत में ‘दीने काइयमा' लिखा है। जिसका अर्थ है, वह सच्चा धर्म जो पहले से था, है और सदा रहेगा। इसलिए हमने इसका अनुवाद शाश्वत या सनातन धर्म किया है।) 2. ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा कि, सब मनुष्य (पहले) एक ही श्रद्धा वाले थे। (एक ही धर्म के मानने वाले थे)। फिर उन्होंने धर्म विभेद किया (अलग-अलग धर्म बना लिए)। और यदि तेरे ईश्वर की ओर से एक बात पहले से न निश्चय पा गई होती (अर्थात मानवजाति को प्रलय तक जीवित रखना है ईश्वर ने इस बात को न निश्चित किया होता) तो जिस चीज में वे विभेद कर रहे हैं उसका उनके बीच फैसला कर दिया जाता। (सूरे यूनुस १० आयत १९)