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विषय नं. 30 - धार्मिक ज्ञान का महत्व



अध्याय नं. 4 ,श्लोक नं. 3
श्लोक

स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः । भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् ॥3॥

सः एव अयम् मया ते अद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः । भक्तः असि मेसखा च इति रहस्यम् हि एतत् उत्तमम् ।। ३ ।।

शब्दार्थ

(ए वं) नि:संदेह ( पुरातनः) प्राचीन काल में (योगः) जो दिव्य ज्ञान (मया) मेरे (प्रोक्तः) (द्वारा) कहा गया था। (स) यह (अयम) वही (दिव्य ज्ञान है) (अद्य) (जो) आज (मैं तुमसे कह रहा हूँ) (च) और (मे) (तुम) मेरे (भक्तः) भक्त (सखा) (और) मित्र (असि) हो (इति) इस कारण (हि) नि:संदेह (तुम) (एतत्) इस (उत्तमम् ) महान (रहस्यम्) (दिव्य ज्ञान के) रहस्य (को समझ सकोगे ) ।

अनुवाद

नि:संदेह प्राचीन काल में जो दिव्य ज्ञान मेरे (द्वारा ) कहा गया था। यह वही (दिव्य ज्ञान है) (जो) आज (मैं तुमसे कह रहा हूँ)। (तुम) मेरे भक्त (और) मित्र हो, इस कारण नि:संदेह (तुम) इस महान (दिव्य ज्ञान के) रहस्य (को समझ सकोगे)।