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विषय नं. 30 - धार्मिक ज्ञान का महत्व



अध्याय नं. 4 ,श्लोक नं. 11
श्लोक

ये यथा माँ प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥11॥

ये यथा माम् प्रपद्यन्त तान् तथा एव भजामि अहम् । मम वर्त्म अनुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः । । ११ ।।

शब्दार्थ

(अर्जुन) हे अर्जुन! (ये) जो (यथा) जिस प्रकार (माम) मेरी (प्रपधन्ते) शरण लेता है। (अहम्) मैं ( तान्) उन्हें ( तथा एव ) उसी प्रकार (भजामि ) आश्रय देता हूँ (इसी कारण) (मनुष्या) मनुष्य (को) (सर्वश) सब प्रकार से (केवल) (मम) मेरे (ही) (वर्त्म) मार्ग का (अनुवर्तन्ते) अनुसरण करना चाहीए।

अनुवाद

हे अर्जुन! जो जिस प्रकार मेरी शरण लेता है। मैं उन्हें उसी प्रकार आश्रय देता हूँ। मनुष्य (को) सब प्रकार से ( केवल) मेरे मार्ग का अनुसरण करना चाहीए ।

नोट

पैगम्बर मुहम्मद साहब (स.) ने कहा ईश्वर ने कहा है कि, “मैं मनुष्य के कल्पना के अनुसार उससे व्यवहार करता हूँ। वह मुझसे जैसी अपेक्षा रखता है, वैसे ही मैं उसे फल देता हूँ।" (बुखारी, मुस्लिम, हदीसे नबवी की रोशनी हदीस नं. ५६३ )