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विषय नं. 30 - धार्मिक ज्ञान का महत्व



अध्याय नं. 16 ,श्लोक नं. 23
श्लोक

य: शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारत: |
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम् ||23||

यः शाख-विधिम् उत्सृज्य वर्तते काम-कारतः ।
न सः सिद्धिम् अवाप्नोति न सुखम् न पराम् गतिम् ॥२३॥

शब्दार्थ

(यः) जो (व्यक्ति) (काम-कारतः) (केवल) अपनी इच्छाओं को पूरा करने का काम (वर्तत) करता है। (शास्त्र - विधिम्) धार्मिक नियमों को (उत्सृज्य) छोड़ देता है (सः) वह (न) न (सिद्धिम्) प्रार्थनाओं में परिपूर्ण (अवाप्नोति) प्राप्त कर पाता है (न) (और) न (सुखम्) (जीवन में) सुख (पाता है) (न) (और) न (पराम् गतिम्) सबसे श्रेष्ठ जीवन का लक्ष्य (अर्थात) स्वर्ग प्राप्त कर पाता है।

अनुवाद

जो व्यक्ति (केवल) अपनी इच्छाओं को पूरा करने का काम करता है। धार्मिक नियमों को छोड़ देता है, वह न प्रार्थनाओं में परिपूर्णता (Perfection) प्राप्त कर पाता है और न जीवन में सुख पाता है और न सबसे श्रेष्ठ जीवन का लक्ष्य अर्थात स्वर्ग प्राप्त कर पाता है।