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विषय नं. 30 - धार्मिक ज्ञान का महत्व



अध्याय नं. 16 ,श्लोक नं. 24
श्लोक

तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ |
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि ||24||

तस्मात् शास्त्रम् प्रमाणम् ते कार्य अकार्य व्यवस्थितौ ।
ज्ञात्वा शास्त्र विधान उक्तम् कर्म कर्तुम् इह अर्हसि ।।२४।।

शब्दार्थ

(तस्मात्) इस कारण (ते) तुम्हारे (कार्य) कर्तव्य क्या है (अकार्य) और क्या कार्य आपको नहीं करना है। (व्यवस्थितौ) इसका निर्णय करने के लिए (शास्त्रम् प्रमाणम्) धार्मिक ज्ञान तुम्हारा प्रमाण होना चाहिए (ज्ञात्वा शास्त्र) (इस कारण) शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करो (विधान) धर्म के नियमों को समझो (उक्तम्) ईश्वर के आदेशों को जानो (इह) (और) इस संसार में (अर्हसि ) (इन्हीं के) अनुसार (कर्म) अपने (अनिवार्य) कर्तव्य को (कर्तुम्) पूरा करो।

अनुवाद

इस कारण तुम्हारे कर्तव्य क्या है? और क्या कार्य आपको नहीं करना है, इसका निर्णय करने के लिए धार्मिक ज्ञान ही तुम्हारा प्रमाण होना चाहिए। इस कारण शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करो, धर्म के नियमों को समझो, ईश्वर के आदेशों को जानो, और इस संसार में इन्हीं के अनुसार अपने कर्तव्य को पूरा करो।