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विषय नं. 30 - धार्मिक ज्ञान का महत्व



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 18
श्लोक

ज्ञानं ज्ञेयं परिज्ञाता त्रिविधा कर्मचोदना । करणं कर्म कर्तेति त्रिविधः कर्मसङ्ग्रहः ॥18॥

ज्ञानम् ज्ञेयम् परिज्ञाता त्रि-विधा कर्म चोदना । करणम् कर्म कर्ता इति त्रि-विधः कर्म सडग्रहः ।। १८ ।।

शब्दार्थ

(ज्ञानम्) दिव्य ज्ञान, (ज्ञेयम्) (अन्य लोक) जिसका ज्ञान होना चाहिए (परिज्ञाता) (ईश्वर) जो सब कुछ जानता है (त्रि-विधा) यह तीन (कर्म चोदना) कर्म के लिए प्रेरीत करने वाले हैं (करणम्) कर्म की इच्छा (कर्म) कर्म (कर्ता) (और) कर्म को करने वाला (इति त्रि विध:) यह तीन (कर्म सडग्रहः) कर्म के तत्त्व हैं।

अनुवाद

दिव्य ज्ञान, अन्य लोक जिसका ज्ञान होना चाहिए, ईश्वर जो सब कुछ जानता है। यह तीन कर्म के लिए प्रेरित करने वाले हैं। कर्म की इच्छा, कर्म और कर्म को करने वाला यह तीन कर्म के तत्त्व हैं।