Home Chapters About



विषय नं. 30 - धार्मिक ज्ञान का महत्व



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 19
श्लोक

ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदतः । प्रोच्यते गुणसङ्ख्याने यथावच्छणु तान्यपि॥19॥

ज्ञानम् कर्म च कर्ता च त्रिधा एव गुण-भेदतः । प्रोच्यते गुण-सडख्याने यथावत् शृणु तानि अपि
।। १९ ।।

शब्दार्थ

(ज्ञानम्) ज्ञान (कर्म) कर्म (च) और (कर्ता) कर्म को करने वाला (मनुष्य) (च) भी (त्रिधा) तीन प्रकार के हैं (एव) नि:संदेह (जो) (गुण-भेदतः) जो तीन गुणों के अनुसार पहचाने जाते हैं। (गुण) गुणों का (यथा-वत्) जिस तरह (सडख्याने) वेदों में (प्रोच्यते) वर्णन (तानि) वह (अपि) भी (शृणु) सुनो। हुआ है

अनुवाद

ज्ञान, कर्म, और कर्म को करने वाले मनुष्य भी तीन प्रकार के हैं। नि:संदेह जो तीन गुणों के अनुसार पहचाने जाते हैं। गुणों का जिस तरह वेदों में वर्णन हुआ है, वह भी सुनो।

नोट

-सर्व-भूतेषु येन एकम् भावम् अव्ययम् ईक्षते । अविभक्तम् विभक्तेषु तत् ज्ञानम् विद्धि सात्विकम् ।।२०।।