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विषय नं. 30 - धार्मिक ज्ञान का महत्व



अध्याय नं. 18 ,श्लोक नं. 20
श्लोक

सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते। अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम् ॥20॥

सर्व-भूतेषु येन एकम् भावम् अव्ययम् ईक्षते । अविभक्तम् विभक्तेषु तत् ज्ञानम् विद्धि सात्विकम् ।।२०।।

शब्दार्थ

(येन) (वह ज्ञान) जिसके द्वारा (ईक्षते) (मनुष्य) देखता है कि (सर्व) सम्पुर्ण (भूतेषु) प्राणी (एवम्) एक (अव्ययम्) अविनाशी (ईश्वर द्वारा) (भावम्) निर्माण किए गए हैं (विभक्तेषु) (और वह ईश्वर) विभिन्न प्रकार के (प्राणियों को निर्माण करने और पालने के लिए) (अविभक्तम्) बटा हुआ नहीं है (विद्धि) तो समझ लो कि (तत्) वह (ज्ञानम्) ज्ञान (सात्विकम्) सात्विक गुण से प्रेरित है।

अनुवाद

वह ज्ञान जिसके द्वारा मनुष्य देखता है कि सम्पुर्ण प्राणी एक अविनाशी ईश्वर द्वारा निर्माण किए गए हैं। और वह ईश्वर विभिन्न प्रकार के प्राणियों को निर्माण करने और पालने के लिए बटा हुआ नहीं है, तो समझ लो कि वह ज्ञान सात्विक गुण से प्रेरित है।