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विषय नं. 31 - भाग्य



अध्याय नं. 13 ,श्लोक नं. 22
श्लोक

पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान्गुणान् । कारणं गुणसंगोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ॥22॥

पुरुषः प्रकृतिस्थः हि भुङक्ते प्रकृति जान् गुणान् । कारणम् गुण-सड्: अस्य सत् असत् योनि जन्मसु ।। २२।।

शब्दार्थ

( प्रकृतिस्थः) भाग्य में विश्वास रखने वाला (पुरुष) मनुष्य (भुङ्क्ते) अनुभव करते हैं की (गुणान्) मनुष्य के गुण (कारणम्) (और) कर्म करने के कारण (प्रकृति) भाग्य से ही उत्पन्न होते है। (अस्य) (और) मनुष्य (योनि) वीर्य स्थिती से ही (सत्) अच्छे (असत्) असत्य बुरे (गुण) गुणों (सडग ) के साथ (जन्मसु) जन्म लेता है।

अनुवाद

भाग्य में विश्वास रखने वाला मनुष्य अनुभव करते हैं कि मनुष्य के गुण, और कर्म करने के कारण, भाग्य से ही उत्पन्न होते हैं और मनुष्य वीर्य स्थिती से ही (सत्य) अच्छे और बुरे गुणों के साथ जन्म लेता है।

नोट

पंडित ईश्वरचंद ने अपने संस्कृत हिन्दी शब्दकोश में पेज नं. ५७७ पर प्रकृति के दो अर्थ लिखे हैं। १. माया २. सृष्टि रचना में परमात्मा की इच्छा माया यह ईश्वर की मनुष्य की परीक्षा लेने की एक प्रणाली है। ईश्वर ने मनुष्य का भाग्य भी उसके परीक्षा लेने के अनुसार बनाया है। इसी प्रकार परमात्मा ने जो सृष्टि रची है मनुष्य भी सृष्टि का एक भाग है। जब संसार में वर्षा होती है। या मौसम बदलता है तो हम कहते है यह सृष्टि का नियम है। और जब मनुष्य के जीवन में हालात बदलते हैं, तो हम कहते हैं, यह मनुष्य का भाग्य है किन्तु दोनों ही परमात्मा की इच्छा है। इस कारण जब सृष्टि शब्द किसी श्लोक में संसार के लिए उपयोग होगा तो हम उसे सृष्टि ही कहेंगे और जब मनुष्य के लिए सृष्टि शब्द का उपयोग होगा तो हम उसे मनुष्य का भाग्य समझेंगे। श्लोक नं. १३.२१ में इसी लिए हमने सृष्टि का अनुवाद 'भाग्य' किया है और इससे श्लोक का अर्थ भी अच्छी तरह समझ में आता है। (ईश्वर को न मानने वालों से) कहों, हमें हरगिज़ कोई बुराई या भलाई या हानि और लाभ) नहीं पहुंचती मगर वह जो ईश्वर ने हमारे लिए लिख दी है। ईश्वर ही हमारा संरक्षक मित्र है, और इमान वालों को (ईश्वर में श्रद्धा रखने वालों को) उसी पर भरोसा करना चाहिए। (सूरह अत तौबा-९, आयत ५१)