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विषय नं. 31 - भाग्य



अध्याय नं. 13 ,श्लोक नं. 23
श्लोक

उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः ।
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः ॥23॥

उपद्रष्टा अनुमन्ता भर्ता भोक्ता महा-ईश्वरः ।
परम् आत्मा इति च अपि उक्तः देहे अस्मिन् पुरुषः परः
।।२३।।

शब्दार्थ

(अदृष्टा) ईश्वर साक्षी है (अर्थात सृष्टि में आरम्भ से अन्त तक जो हो चुका और होगा वह उसे देख रहा है।) (अनुमन्ता) ब्रह्माण्ड में जो कुछ होता है वह उसके आदेश से होता है। (च) और (वह) (भर्ता) प्राणियों का पालन पोषण करता है (भोक्ता) सारी प्रार्थनाएं उसी ईश्वर के लिए की जाती हैं। (महा ईश्वरः) वह ईश्वर सबसे महान है। (च) और (उक्तः) (ईश्वर) कह रहा है की (इति अपि) नि:संदेह वह (अस्मिन) इस (देहे) शरीर वाले (पुरुषः) मनुष्य होने से (परः) परे है (महान है) (परम् आत्मा) और आत्मा से भी महान है।

अनुवाद

ईश्वर साक्षी है (अर्थात सृष्टि में आरम्भ से अन्त तक जो हो चुका और होगा वह उसे देख रहा है।) ब्रह्माण्ड में जो कुछ होता है वह उसके आदेश से होता है और (वह) प्राणियों का पालन पोषण करता है। सारी प्रार्थनाएं उसी ईश्वर के लिए की जाती हैं। वह ईश्वर सबसे महान है और (ईश्वर) कह रहा है कि, निःसंदेह वह इस शरीर वाले मनुष्य होने से परे है (महान है), और आत्मा से भी महान है।

नोट

ईश्वर शरीर और आत्मा दोनों से परे है, उच्चतम है, महान है। इस कारण वह शरीर या आत्मा के रुप कभी नहीं आएगा और आत्मा भी उसमें नहीं समाएगी ।