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विषय नं. 31 - भाग्य



अध्याय नं. 13 ,श्लोक नं. 24
श्लोक

य एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणैः सह । सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते ॥24॥

य एवम् वेत्ति पुरुषम् प्रकृतिम् च गुणैः सह ।
सर्वथा वर्तमानः अपि न सः भूयः अभिजायते
।। २४ ।।

शब्दार्थ

(एराम्) इस तरह (यः) जो व्यक्ति (प्रकृतिम्) भाग्य को (च) और (पुरुषम् ) मनुष्य को (गुणैः सह ) गुणों के साथ (वेत्ति) जान लेता है (सर्वथा) और हर तरफ (वर्तमानः) जो कुछ हो रहा है (अर्थ जो कुछ हो रहा है वह भाग्य और ईश्वर के आदेश से हो रहा है ऐसा मान लेता है तो) (अपि) नि:संदेह (सः) वह (भूयः) बार बार जन्म नहीं लेता है।

अनुवाद

इस तरह जो व्यक्ति भाग्य को, और मनुष्य को गुणों के साथ जान लेता है, और हर तरफ जो कुछ हो रहा है (अर्थ जो कुछ हो है वह रहा भाग्य और ईश्वर के आदेश से हो रहा है ऐसा मान लेता है तो) नि:संदेह वह (नरक में ) बार बार जन्म नहीं लेता है।