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विषय नं. 32 - प्रार्थना



अध्याय नं. 6 ,श्लोक नं. 10
श्लोक

योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः । एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः ||10||

योगी युज्जीत सततम् आत्मानम् रहसि स्थितः।
एकाकी यत-चित्त-आत्मा निराशी: अपरिग्रहः ।।१०।।

शब्दार्थ

(योगी) ईश्वर की प्रार्थना करने वाले को चाहिए की (युन्तीत) ईश्वर की प्रार्थना के लिए (सत्यतम् ) सदैव (आत्यानम्) अपने आपको (रहसि ) शान्त स्थान पर ले जाए (एकाकी) एकांत में (आत्मा) अपने आपको (स्थितः) स्थित करके (अपरिग्रह) नम्रता से (निराशी ) इच्छाओं को त्याग कर (यत-चिंता) अपने मन और बुद्धि को ईश्वर के ध्यान में लगाए ।

अनुवाद

ईश्वर की प्रार्थना करने वाले को चाहिए कि ईश्वर की प्रार्थना के लिए सदैव अपने आपको शान्त स्थान पर ले जाए। एकांत में अपने आपको स्थित करके, नम्रता से, इच्छाओं को त्याग कर अपने मन और बुद्धि को ईश्वर के ध्यान में लगाए ।