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विषय नं. 32 - प्रार्थना



अध्याय नं. 6 ,श्लोक नं. 11
श्लोक

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः । नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम् ॥11॥

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरम् आसनम् आत्मनः । न अति उच्छितम् न अति नीचम् चैल-अजिन कुश उत्तरम् ।।११।।

शब्दार्थ

(शुचौ) पवित्र (देशे) धरती (न) जो न (अति) बहुत अधिक (उच्छितम्) उँची हो (न) और न (अति) बहुत अधिक (नीचम्) नीची हो, (कुश) उस पर घास अथवा पतला (चैल) मुलायम वस्त्र (अजिन) अथवा मृगछाला (उत्तरम्) बिछाकर (आत्मनः) अपने आपको (स्थिम्) मजबूती से ( प्रतिष्ठाप्य ) स्थित करके (आसनम्) बैठ जाए।

अनुवाद

पवित्र धरती जो न बहुत अधिक उँची हो और न बहुत अधिक नीची हो, उस पर घास अथवा पतला मुलायम वस्त्र अथवा मृगछाला बिछाकर अपने आपको मजबूती से स्थित करके बैठ जाए।