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विषय नं. 32 - प्रार्थना



अध्याय नं. 6 ,श्लोक नं. 13
श्लोक

तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः।
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ॥13॥

समम् काय शिरः ग्रीवम् धारयन् अचलम् स्थिरः । सम्प्रेक्ष्य नासिका अग्रम् स्वम् दिशः च अनवलोकयन् ।।१३।।

शब्दार्थ

(काय) शरीर (शिरः) मस्तिष्क (ग्रीवम्) और गर्दन को (समम्) सीधा रखकर (अचलम्) मन को किसी (की ओर) न भटकाकर, (स्थिर) एक ईश्वर की याद को स्थिर करके, (च) किसी भी (दिशः) दिशा में (अनवलोकयन्) न देखते हुए, (स्वम्) अपनी (नासिका) नाक के (अग्रम्) अगले भाग की जगह पर (सम्प्रेक्ष्य) देखते हुए।

अनुवाद

शरीर, (सिर) मस्तिष्क और गर्दन को सीधा रखकर, मन को किसी (की ओर) न भटकाकर, एक ईश्वर की याद को स्थिर करके, किसी भी दिशा में न देखते हुए, अपनी नाक के अगले भाग की जगह पर देखते हुए।