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विषय नं. 32 - प्रार्थना



अध्याय नं. 6 ,श्लोक नं. 14
श्लोक

प्रशान्तात्मा विगतभीब्रह्मचारिव्रते स्थितः ।
मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः॥14॥

प्रशान्त आत्मा विगत-भीः ब्रह्मचारि-व्रते स्थितः मनः संयम्य मत् चित्तः युक्तः आसीत मत् परः ।।१४।।

शब्दार्थ

(प्रशान्त आत्मा) शान्त मन (विगत भी:) भय के बिना (व्रते स्थितः) दृढ़ सन्कल्प के साथ की (ब्रह्मचारि) ईश्वर के आदेश अनुसार जीवन व्यतीत करेंगे ( मनःसंयम्य ) अपने विचारों पर संयम रखो और (आसीत् मत् परः) मुझे सबसे महान मानते हुए बैठो और (मत् चितः युक्तः) मुझमें अपने ध्यान को लगाओ।

अनुवाद

शान्त मन और भय के बिना, दृढ़ संकल्प के साथ की ईश्वर के आदेश अनुसार जीवन व्यतीत करेंगे, अपने विचारों पर संयम रखो, और मुझे सबसे महान मानते हुए बैठो, और मुझमें अपने ध्यान को लगाओ।