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विषय नं. 32 - प्रार्थना



अध्याय नं. 6 ,श्लोक नं. 15
श्लोक

युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानसः ।
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति ॥15॥

युज्जन् एवम् सदा आत्मानम् योगी नियत मानसः । शान्तिम् निर्वाण-परमाम् मत्-संस्थाम् अधिगच्छति।।१५।।

शब्दार्थ

(एराम्) इस तरह (योगी) भक्त, (सदा) सदैव (आत्मानम्) अपने (मानसः) मन को (नियत) वश में रखकर, (युन्जन्) नियोजित समय अनुसार भक्ति करते हुए, (शान्तिम् ) ( संसार में) सच्ची शान्ति (मत्) (और मरने के बाद) मेरे (संस्थाम्) धाम (निर्माण परमाम् ) यानी स्वर्ग के सबसे श्रेष्ठ शान्ति वाले धाम को (अधिगच्छति) पाता है।

अनुवाद

इस तरह भक्त, सदैव अपने मन को वश में रखकर, नियोजित समय अनुसार भक्ति करते हुए, (संसार में) सच्ची शान्ति (और मरने के बाद) मेरे धाम यानी स्वर्ग के सबसे श्रेष्ठ शान्ति वाले धाम को पाता है।