Home Chapters About



विषय नं. 32 - प्रार्थना



अध्याय नं. 6 ,श्लोक नं. 18
श्लोक

यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते । निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा ॥18॥

यदा विनियतम् चित्तम् आत्मनि एव अवतिष्ठते निस्पृहः सर्व कामेभ्यः युक्त इति उच्यते तदा ।।१८।।

शब्दार्थ

(यदा) जब मनुष्य (कामेभ्य) मन की इच्छाएं पूरी करने की (सर्व) सभी (चाह को) (निस्पृह) त्याग देता है (विनियतम) और विशेष रूप से (आत्मनि) ईश्वर (के आदेश का पालन करने में) (अवतिष्ठते) स्थित रहता है तो (तदा) ऐसे मनुष्य को (युक्त) (ईश्वर की प्रार्थना में पूरी तरह लगा हुआ) (उच्यते) कहा जाएगा।

अनुवाद

जब मनुष्य मन की इच्छाएं पूरी करने की सभी (चाह को) त्याग देता है और विशेष रूप से ईश्वर (के आदेश का पालन करने में) स्थित रहता है, तो ऐसे मनुष्य को (ईश्वर की प्रार्थना में पूरी तरह लगा हुआ) कहा जाएगा।