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विषय नं. 32 - प्रार्थना



अध्याय नं. 8 ,श्लोक नं. 5
श्लोक

अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् ।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥5॥

अन्त-काले च माम् एव स्मरन् मुक्तवा कलेवरम् यः प्रयाति सः मत् भावम् याति न अस्ति अत्र संशयः ।।५।।

शब्दार्थ

(अन्त-काले) मृत्यु के समय (कलेवरम् ) शरीर के को (मुक्तवा) त्यागते हुए (यः) जो (मम) मेरा (स्मरन्) स्मरण करता है (एव) नि:संदेह (सः) वह (मत-भावम् ) मेरी आज्ञाकारी स्वभाव ( सात्विक गुणों वाला स्वभाव) (याति) प्राप्त कर चुका (अत्र) इस तरह (मानने में) (संशय ) कोई संदेह (न) नहीं (अस्ति) है।

अनुवाद

मृत्यु के समय शरीर को त्यागते हुए जो (मेरा स्मरण) करता है, नि:संदेह वह मेरी आज्ञाकारी स्वभाव (सात्विक गुणों वाला स्वभाव) प्राप्त कर चुका इस तरह (मानने में कोई संदेह नहीं है।