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विषय नं. 32 - प्रार्थना



अध्याय नं. 8 ,श्लोक नं. 6
श्लोक

यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् ।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ||6||

यम् यम् वा अपि स्मरन् भावम् त्यजति अन्ते कलेवरम् । तम् तम् एव एति कौन्तेय सदा तत् भाव भावितः ॥६॥

शब्दार्थ

(कौन्तेय ) हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन)! (अन्त) जीवन के अन्तिम क्षणों में (कलेवरम् ) शरीर को ( त्यजति) त्यागते समय (मृत्यु के समय) ( यम यम) (मृतक) जिस-जिस (भावम्) व्यक्तीत्व (देवता) या प्राकृतिक शक्ति (वा अपि) को भी (स्मरण) स्मरण करता है ( एवं) नि:संदेह (तम तम) वह उसी को (एति) पाता है। (सदा) (क्योंकि) सदा वह व्यस्त रहा (तत्) उस ( देवता या शक्ति की) (भाव) प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए।

अनुवाद

हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन)! जीवन के अन्तिम क्षणों में शरीर को त्यागते समय (मृत्यु के समय) (मृतक) जिस-जिस व्यक्तीत्व (देवता या प्राकृतिक शक्ति को भी) स्मरण करता है, निःसंदेह वह उसी को पाता है। क्योंकि) सदा वह व्यस्त रहा उस (देवता या शक्ति की) प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए। (श्लोक नं. ७.२३ में है की ऐसे लोगों का विनाश होगा।)

नोट

पैगंबर मुहम्मद साहब (स.) ने कहा, जो व्यक्ति जानबुझकर श्रद्धा और सतकर्म के प्रति जिस प्रकार का जीवन व्यतीत करेगा। उसे उसी स्थिती में मृत्यु आएगी। (हदीस-मुस्लिम)