Home Chapters About



विषय नं. 32 - प्रार्थना



अध्याय नं. 8 ,श्लोक नं. 8
श्लोक

अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना।
परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन् ॥8॥

अभ्यास-योग युक्तेन चेतसा न अन्य गामिनः । परमम् पुरुषम् दिव्यम् याति पार्थ अनुचिन्तयन्
।।८।।

शब्दार्थ

(अभ्यास) वेदों के पढ़ने में और (योग) ईश्वर की प्रार्थना में (युत्केन) लगे रहो (चेतसा ) अपने मन को (अन्य ) किसी दूसरी ओर (न) मत (गामिनः) भटकाओ (पार्था) हे अर्जुन (इस प्रकार तुम) (याति) (ऐसी बुद्धि) पाओगे (अनुचिन्तयन्) जो सदैव व्यस्त रहता है। (परमम् पुरुषम् दिव्यम्) महान दिव्य ईश्वर ( की याद में ) ।

अनुवाद

वेदों के पढ़ने में और ईश्वर की प्रार्थना में लगे रहो। अपने मन को किसी दुसरी ओर मत भटकाओ। हे अर्जुन, (इस प्रकार तुम ) ( ऐसी बुद्धि) पाओगे जो सदैव व्यस्त रहता है महान दिव्य ईश्वर (की याद में ) ।

नोट

पैगंबर मुहम्मद (स.) ने कहा स्वर्ग में प्रवेश करने के बाद मनुष्य एक वस्तु के अतिरिक्त किसी वस्तु के लिए नहीं पछताऐगा। और वह एक वस्तु है मनुष्य का धरती पर बिताया हुआ वह समय जो उसने ईश्वर की याद ( स्मरण) के बिना बिताए थे। (हदीस)