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विषय नं. 33 - पथभ्रष्ट होने का कारण



अध्याय नं. 3 ,श्लोक नं. 37
श्लोक

श्रीभगवानुवाच
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः । महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् ॥37॥

श्री भगवान उवाच,
कामः एषः क्रोधः एषः रजो गुण समुद्भवः महा-अशनः महा-पाप्मा विद्धि एनम् इहवैरिणम् ।।३७।।

शब्दार्थ

(श्री भगवान उवाचः) ईश्वर ने कहा, (कामः) अपनी इच्छा को पूरी करने की चाह (काम भावना ही सब पापों का कारण है) (क्रोध) (जब इच्छा पूरी नहीं होती हैं तो) क्रोध: ( उत्पन्न होता है) (एषः) और यह (काम भावना) (रजो गुण) रजो गुण (अर्थात अपनी इच्छा को पूरी करने के लिए निरंतर प्रयास के गुण से) (समुदभवः) उत्पन्न होता है। (एनम्) इसी काम भावना को (इह) इस संसार में (वैरिणाम् ) महान शत्रु (महापाप्मा) घोर पाप (महा अशन:) बड़े विनाश का कारण (विद्धि) जानो।

अनुवाद

ईश्वर ने कहा अपनी इच्छा को पूरी करने की चाह ( काम भावना ही सब पापों का कारण है) (जब इच्छा पुरी नहीं होती है तो) क्रोध: ( उत्पन्न होता है) और यह (काम भावना) रजो गुण (अर्थात अपनी इच्छा को पूरी करने के लिए निरंतर प्रयास के गुण से) उत्पन्न होता है। इसी काम भावना को इस संसार में महान शत्रु, घोर पाप और बड़े विनाश का कारण जानो। (काम भावना को समझने के लिए नोट नं. N-८ का अध्ययन करें।)

नोट

स्वामी मुकुनन्दा जी ने श्लोक नं. ३.३७ की व्याख्या में लिखा है कि कामः शब्द का उपयोग वेदों में केवल यौन इच्छा के लिए नही हुआ है, बल्कि इसे हर शारीरिक आनंद लेने की इच्छा, धन, सम्मान और सत्ता की चाह को भी कहा है। अगर सरल शब्दों में कहें तो यह केवल अपनी इच्छाओं के अनुसार जीवन व्यतीत करने की चाह है। और मन की यह भावना धार्मिक अनिवार्य कर्तव्य को पूरा करने के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट है। इस भावना की ईश्वर ने पवित्र कुरआन में निम्नलिखित शब्दों में निंदा की है। “(हे पैगंबर) क्या तुमने उस व्यक्ति को देखा जिसने अपना ईश्वर अपनी इच्छाओं को बना रखा है? तो क्या तुम उस (को सीधे मार्ग पर लाने) के ज़िम्मेदार हो सकते हो? क्या तुम समझते हो कि इनमें अधिकतर सुनते या समझते हैं? ये तो बस चौपायों की तरह हैं, बल्कि ये और बढ़कर मार्ग से भटके हुए हैं।” (सूरे अल फुरकान (२५) आयत ४३-४४)