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विषय नं. 33 - पथभ्रष्ट होने का कारण



अध्याय नं. 7 ,श्लोक नं. 27
श्लोक

इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत ।
सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप ॥27॥

इच्छा द्वेष समुत्थेन द्वन्द्व मोहेन भारत । सर्व भूतानि सम्मोहम् सर्गे यान्ति परन्तप ।।२७।।

शब्दार्थ

(भारत) हे अर्जुन! (मोहेन) भ्रम (सत्य को न जानने के कारण) (इच्छा द्वेष) (उन्नती और समृद्धी की) इच्छा (और असफलता और कष्ट) से द्वेष (जैसे) (द्वन्द्व) द्वन्द्व (Duality) (समुत्थेन) (मन में) जन्म लेते है (परन्तप) हे अर्जुन (सर्व भुतानि) सारे लोग (सर्गे) जन्म से ही (सम्मोहम्) इस भ्रम में (यान्ति ) ग्रस्त (मुबतिला) रहते हैं।

अनुवाद

हे अर्जुन! भ्रम (सत्य को न जानने के कारण ) (उन्नती और समृद्धी की) इच्छा (और असफलता और कष्ट) से द्वेष (जैसे) द्वन्द्व (Duality) (मन में) जन्म लेते हैं। हे अर्जुन! सारे लोग जन्म से ही इस भ्रम में ग्रस्त (मुबतिला) रहते हैं।

नोट

(मानवजाति को भ्रम यह है कि इस पृथ्वी पर सफलता ही वास्तविक सफलता है और सत्य यह है कि सत्कर्म करके स्वर्ग पाना ही वास्तविक सफलता है। किन्तु मनुष्य जन्म से ही केवल पृथ्वी पर सफल होने के प्रयास में लगा रहता है और यह उसका भ्रम है।)