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विषय नं. 34 - संगम (शिर्क) के कारण



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 11
श्लोक

अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम् ॥11॥

अवजानन्ति माम् मूढाः मानुषीम् तनुम् आश्रितम । परम् भावम् अजानन्तः मम भूत महा-ईश्वरम् ॥११॥

शब्दार्थ

(मूढाः) मूर्ख लोग (माम) मुझ ( महा ईश्वरम्) महान ईश्वर (को) (भूत) (सभी) प्राणियों (का) (परम भावम्) महान रचियता (अजानन्तः) नहीं मानते (मानुषीम्) (वह मुझे) मनुष्य (की तरह) (तनुम) आकार या शरीर वाला (आश्रितम्) मानकर (माम) मेरा (अवजानन्ति) अपमान करते हैं।

अनुवाद

मूर्ख लोग मुझ महान ईश्वर (को) (सभी) प्राणियों (का) महान रचियता नहीं मानते। (वह मुझे) मनुष्य की तरह आकार या शरीर वाला मानकर मेरा अपमान करते हैं।