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विषय नं. 1 - अहिंसा



अध्याय नं. 10 ,श्लोक नं. 5
श्लोक

बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः ।
सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ॥4॥
अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः ।
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः ॥5॥

बुद्धीः ज्ञानम् असम्मोहः क्षमा सत्यम् दमः क्षमः ।
सुखम् दुःखम् भवः अभावः भयम् च अभयम् एव च ।।४।।
अहिंसा समता तृष्टिः तपः दानम् यशः अयशः ।
भवन्ति भावाः भूतानाम् मत्तः एव पृथक विधाः ।।५।।

शब्दार्थ

(बुद्धिः) बुद्धि: ( ज्ञानम्) ज्ञान ( का उपयोग) (असम्मोहः) मोहीत न होना (क्षमा) क्षमा करना (सत्यम्) सत्य मार्ग पर चलना ( दम्:) अपने आपको वश (नियंत्रण) में रखना (एवं) तथा (सुखम) सुख (दुःखम) दुःख ( भवः ) जन्म (अभावः) मृत्यु (भयम्) भय (अभयम्) (साहस) अभय (च) और (अहिंसा) अहिंसा ( समता ) न्याय करना ( तुष्टि) संतुष्ट रहना (तपः) तपः (कष्ट उठाना) (दानम) दान देना (यशः) यश: (च) और (अयशः) अपयश (में संयम बरतना) ( एवं) नि:संदेह (यह) (पृथक) अनेक (विधा) प्रकार के (भावाः) भाव (भावनाएँ) हैं (मतः) (जो ) मैंने ( भवन्ति ) रचना की है।

अनुवाद

बुद्धिः ज्ञान का उपयोग करना, मोहित न होना, क्षमा करना, सत्य मार्ग पर चलना, अपने आपको वश (नियंत्रण) में रखना, तथा सुख, में दुःख, जन्म, मृत्यु, भय, (साहस) अभय में एक समान रहना, और अहिंसा, न्याय का पालन करना, संतुष्ट रहना, तप करना, दान देना, यश: और अपयश में संयम बरतना, निःसंदेह यह अनेक प्रकार के भाव (भावनाएँ) हैं, जो मैंने रचना की है। (यह सब भावनाएं ईश्वर की महानता को सिद्ध करती है। वैज्ञानिक सुपर कम्प्युटर का निर्माण कर सकते हैं। किन्तु यह सब भावना वह किसी रोबोट में नहीं डाल सकते हैं। वह ईश्वर ही है जो मिट्टी के शरीर में यह सब भावनाएं रच देता है।)