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विषय नं. 4 - ईश्वर का परिचय



अध्याय नं. 10 ,श्लोक नं. 42
श्लोक

अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन।
विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत् ॥42॥

अथवा बहुना एतेन किम् ज्ञातेन तव अर्जुन।
विष्टभ्य अहम् इदम् कृत्सनम् एक अंशेन स्थितः जगत् ।।४२।।

शब्दार्थ

(अथवा) किन्तु (अर्जुन) हे अर्जुन (तव) तुम्हें (एतेन) इस प्रकार (बहुना) बहुत सी बातें (ज्ञातेन) जानने की (किम् ) क्या आवश्यकता है? ( अहम् ) मैंने (इदम् ) इस ( कुत्सनम् ) सम्पूर्ण (जगत्) जगत को (एक अंशेन) अपने केवल एक तेज के अंश से ( स्थितः) स्थित और (विष्टभ्य) फैला रखा है।

अनुवाद

किन्तु हे अर्जुन! तुम्हें इस प्रकार बहुत सी बातें जानने की क्या आवश्यकता है? मैंने इस सम्पूर्ण जगत को अपने केवल एक तेज के अंश से स्थित और फैला रखा है।

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा, ईश्वर धरती और आकाश का प्रकाश (तेज़) है। (सूरे अलनूर २४, आयत ३५)