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विषय नं. 34 - संगम (शिर्क) के कारण



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 23
श्लोक

येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः ।
तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् ॥23॥

ये अपि अन्य देवता भक्ताः यजन्ते श्रद्धया अन्विताः। ते अपि माम् एव कौन्तेय यजन्ति अविधि पूर्वकम् ।।२३।।

शब्दार्थ

(कौन्तेय) हे कुन्ती पुत्र (अर्जुन) (अपि) नि:संदेह (ये) जो (अन्य ) दूसरे (देवता) देवताओं की (भक्ताः) भक्ति करते हैं (श्रद्धया) और श्रद्धा के साथ (यजन्ते) उनकी भक्ति में (अन्विताः) लगे रहते हैं। ( एवं ) नि:संदेह (ते-अपि) वह भी (माम्) मेरी ही ( यजन्ति) भक्ति करना चाहते हैं (अविधि पूर्वकम्) (किंतु ज्ञान न होने के कारण) विधिनियमों का उल्लंघन करते हैं।

अनुवाद

हे कुन्ती पुत्र अर्जुन, नि:संदेह जो दूसरे देवताओं की भक्ति करते हैं। और श्रद्धा के साथ उनकी भक्ति में लगे रहते हैं। नि:संदेह वह भी मेरी ही भक्ति करना चाहते हैं किंतु ज्ञान न होने के कारण नियमों का उल्लंघन करते हैं।