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विषय नं. 35 - संगम की मनाई



अध्याय नं. 3 ,श्लोक नं. 20
श्लोक

कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः । लोकसंग्रहमेवापि सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि ॥20॥

कर्मणा एव हि संसिद्धिम् आस्थिताः जनक- आदयः । लोक-सङ्ग्रहम् एव अपि सम्पश्यन् कर्तुम् अर्हसि ।।२०।।

शब्दार्थ

( हि) नि:संदेह (जनकादयः) जनक और अनेक महापुरुषों ने (एव) भी (कर्मणा) सत्कर्मों को (सद्विम) पूरी तरह से (आस्थिता) ईश्वर में दृढ श्रद्धा के साथ किया था। (एव अपि) तुम्हें भी ( कर्तुम् ) सत्कर्मों को (लोकसङग्रहम) जन कल्याण (सम्पश्यन) के उद्देश के साथ (अर्हसि ) करना चाहिए।

अनुवाद

नि:संदेह, जनक और अनेक महापुरुषों ने भी सत्कर्मोंों को पूरी तरह से ईश्वर में दृढ श्रद्धा के साथ किया था । तुम्हें भी सत्कर्मों को जन कल्याण के उद्देश्य के साथ करना चाहिए।