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विषय नं. 35 - संगम की मनाई



अध्याय नं. 3 ,श्लोक नं. 25
श्लोक

सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत । कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसंग्रहम् ॥25॥

सक्ताः कर्मणि अविद्वासः यथा कुर्वन्ति भारत। कुर्यात् विद्वान् तथा असक्तः चिकीर्षुः लोक संग्रहम् ||२५||

शब्दार्थ

(भारत) हे अर्जुन! (यथा) जैसे (अविद्वांस) अज्ञानी (सक्ताः) (कर्म फल की) अपेक्षा (के साथ) (कर्मणि) कर्म करते है। (तथा ) वैसे ही (विद्वान) ज्ञानी पुरुषों को (असक्तः) नि:स्वार्थ होकर (लोक-संग्रह्य) संसार के कल्याण के (चिकीर्षु) उद्देश से (कुर्यात्) कर्म करने चाहिए।

अनुवाद

हे अर्जुन! जैसे अज्ञानी (कर्म फल की) अपेक्षा (के साथ) कर्म करते हैं। वैसे ही (विद्वान) ज्ञानी पुरुषों को निस्वार्थ होकर संसार के कल्याण के उद्देश से कर्म करने चाहिए।

नोट

पैगम्बर मुहम्मद साहब (स.) ने कहा, “सारे प्राणी ईश्वर का परिवार है और ईश्वर उस व्यक्ति से अधिक प्रेम करता है जो प्राणियों की अधिक सेवा करता है" (Mishkat-al-masabih-३-१३९२) (इस में केवल मुसलमानों का वर्णन नही है बलके सारे प्राणियों का वर्णन है)