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विषय नं. 35 - संगम की मनाई



अध्याय नं. 6 ,श्लोक नं. 31
श्लोक

सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः । सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ॥31॥

सर्व-भूत-स्थितम् यः माम् भजति एकत्वम् आस्थितः । सर्वथा वर्तमानः अपि सः योगी मयि वर्तते ।। ३१ ।।

शब्दार्थ

(यः) जो (व्यक्ति देखता है) (सर्व भूत) सभी प्राणियों के (स्थितम्) अस्तित्व को (भजति) (और) स्वीकार करता ( है की उनका) (आस्थितः) अस्तित्व (केवल) (माम्) मुझ (एकत्वम्) एक ईश्वर से ही है (सः) (तो) वह (योगी) भक्त (सर्वथा वर्तमान) सभी प्राणियों की सेवा का कर्म करता है (अपि) किन्तु (मयि वर्तते) (वह) कर्म मेरे लिए होते हैं।

अनुवाद

जो (व्यक्ति देखता है) सभी प्राणियों के अस्तित्व को (और) स्वीकार करता है कि उनका) अस्तित्व (केवल) मुझ एक ईश्वर से ही है (तो) वह भक्त सभी प्राणियों की सेवा का कर्म करता है, किन्तु (वह) कर्म मेरे लिए होते है।

नोट

भज= स्वीकार करना (संस्कृत हिन्दी शब्दार्थ कोश पेज नं. ६७३)