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विषय नं. 36 - संगम करने वालो के लिए स्पष्टिकरण



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 18
श्लोक

गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत् । प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम् ॥18॥

गतिः भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणम् सुहृत । प्रभवः प्रलयः स्थानम् निधानम् बीजम् अव्ययम् ।।१८।।

शब्दार्थ

(गतिः) मैं ही तुम्हारे जीवन का लक्ष्य हूँ (भर्ता) मैं ही संसार का रचनाकार हूँ (प्रभुः) मैं ही संसार का प्रभु हूँ (साक्षी) तुम जो पाप या पुण्य करते हो उसका साक्षी मैं हूँ (निवासः शरणम्) केवल मेरी ही शरण है जिसमें तुम सुरक्षित रहोगे। (सुह्यत्) मैं तुम्हारा मित्र हूँ जो तुम्हारा ख्याल रखता है। (प्रभवः) इस ब्रह्मांड का निर्माण मैंने ही किया है (प्रलयः) मैं ही ब्रह्मांड का अंत करूंगा। (स्थानम् ) वह स्थान जहाँ तुम जीवन व्यतीत करते हो वह मेरी ही रचना है। (निधानम्) मृत्यु के बाद तुम्हारा शरीर जहाँ होगा, वह भी मेरी ही रचना है। (अव्ययम्) मैं अविनाशी हूँ (बीजम् ) हर वस्तु का बीज ( अस्तित्व का कारण ) मुझे ही समझो ।

अनुवाद

मैं ही तुम्हारे जीवन का लक्ष्य हूँ। मैं ही संसार का रचनाकार हूँ। मैं ही संसार का प्रभु हूँ। तुम जो पाप या पुण्य करते हो उसका साक्षी मैं हूँ । केवल मेरी ही शरण है जिसमें तुम सुरक्षित रहोगे। मैं तुम्हारा मित्र हूँ जो तुम्हारा ख्याल रखता है। इस ब्रह्मांड का निर्माण मैंने ही किया है। मैं ही ब्रह्मांड का अंत करूंगा। वह स्थान जहाँ तुम जीवन व्यतीत करते हो वह मेरी ही रचना है। मृत्यु के बाद तुम्हारा शरीर जहाँ होगा वह भी मेरी ही रचना है। मैं अविनाशी हूँ। हर वस्तु का बीज (अस्तित्व का कारण) मुझे ही समझो।

नोट

ईश्वर की प्रशंसा पवित्र कुरआन में इस प्रकार है। हे पैगंबर कहो, हे ईश्वर! राज-सत्ता के स्वामी! तू जिसे चाहे राज्य प्रदान करे, और जिससे चाहे राज्य छीन ले। और जिसे चाहे सम्मानित करे, और जिसे चाहे अपमानित करे। तेरे ही हाथ में भलाई है। नि:संदेह तुझे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है। (हर चीज़ तेरे कब्जे में है) (सूरे आले-इमरान (३) आयत (२६))