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विषय नं. 36 - संगम करने वालो के लिए स्पष्टिकरण



अध्याय नं. 9 ,श्लोक नं. 19
श्लोक

तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च ।
अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ॥19॥

तपामि अहम् वर्षम् निगृह्णामि उत्सृजामि च । अमृतम् च एवं मृत्युः च सत् असत् च अहम् अर्जुन ।। १९ ।।

शब्दार्थ

(तपामि अहम्) मैं ही उस गर्मी का ईश्वर हूँ (जो सूर्य में हैं) (अहम वर्षम्) और मैं ही वर्षा करता हूँ (जो सूर्य के गर्मी से उत्पन्न होती है) (निगृह णामि उत्सृजामि) मैं ही वर्षा भेजता हूँ और उसे रोक लेता हूँ। (च) और (अमृतम्) मैं उस स्वर्ग का स्वामी हूँ जहाँ मृत्यु नहीं (च एव) और नि:संदेह (मृत्यु) मैं ही उस नर्क का स्वामी हूँ जहाँ हर क्षण मृत्यु होती है। (च) और (अर्जुन) हे अर्जुन (असत) इस नाशवान संसार (च) और (सत्) (उस) अविनाशी अन्य लोक का (अहम्) मैं ही स्वामी हूँ।

अनुवाद

मैं ही उस गर्मी का ईश्वर हूँ जो सूर्य में हैं और मैं ही वर्षा करता हूँ जो सूर्य के गर्मी से उत्पन्न होती है। मैं ही वर्षा भेजता हूँ और उसे रोक लेता हूँ और मैं उस स्वर्ग का स्वामी हूँ जहाँ मृत्यु नही और नि:संदेह, मैं ही उस नर्क का स्वामी हूँ जहाँ हर क्षण मृत्यु होती है। और हे अर्जुन, इस नाशवान संसार, और उस अविनाशी अन्य लोक का मैं ही स्वामी हूँ।

नोट

ईश्वर पवित्र कुरआन में मानवजाति से प्रश्न करता है कि, भला वह कौन है जिसने आसमानों और जमीन को पैदा किया, और तुम्हारे लिए आसमान से पानी बरसाया, फिर उसके द्वारा वे शोभायमान (सुन्दर) बाग उगाए जिनके पेड़ों का उगाना तुम्हारे अधिकार में न था? क्या ईश्वर के साथ कोई दूसरा पूज्य प्रभु भी ( इन कार्यों में साझीदार) है? (नहीं) बल्कि यही लोग सत्य मार्ग से हटकर चले जा रहे हैं। (सूरह अन नम्ल- २७, आयत ६०)