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विषय नं. 37 - नरक से कोन बचेगा?



अध्याय नं. 5 ,श्लोक नं. 28
श्लोक

यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मनिर्मोक्षपरायणः । विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ।।28।।

यत इन्द्रिय मनः बुद्धिः मुनिः मोक्ष परायणः । विगत इच्छा भय क्रोधः यः सदा मुक्त एव सः ||२८||

शब्दार्थ

(बहिः) (पवित्र व्यक्ति जो) बाहर के ( स्पर्शान) सब आनंद करने के स्त्रोत, साधन और भावना को (बाह्यान) बाहर (कृत्वा) करता है। (च) और (चक्षुः) नेत्रों की दृष्टि को (ध्यान को) (भ्रवोः) भौंहे (eyebrow) के (अन्तरे) बीच में (स्थित करके) (नास-अभ्यन्तर) नासिका में (बहिः) (पवित्र व्यक्ति जो) बाहर के (स्पर्शान्) सब आनंद करने के स्रोत, साधन और भावना को (बाह्यान) बाहर (कृत्वा ) करता है। (च) और (चक्षुः) नेत्रों की दृष्टि को (ध्यान को) (भ्रवोः) भौंहे (eyebrow) के (अन्तरे) बीच में (स्थित करके) (नास-अभ्यन्तर) नासिका में (चारिणौ ) चलने वाली (प्राण- अपानौ) अन्दर और बाहर आने जाने वाली सांस को (समौ ) बराबर ( कृत्वा ) करता है। (अर्थात प्राणायम करता है या ध्यान लगाता है।) (यत) जो वश में रखता है (इन्द्रिय) अपने आनंद का अनुभव करने वाले अंगो को (मनःबुद्धिः) (और) मन और बुद्धि को (अपनी चाह और सोच को) (मुनिः) वह व्यक्ति पवित्र और पूज्य व्यक्ति है। (मोक्ष परायणः) उसके पापों को ईश्वर क्षमा करेगा। (यः) जो व्यक्ति (इच्छा) अपने आनंद का अनुभव करने की इच्छा ( भय) डर (क्रोध) क्रोध (विगत) को वश में करता है (एव) नि:संदेह (सः) वह (सदा) सदा के लिए (मुत्क) नर्क से मुक्त हो जाता है।

अनुवाद

(पवित्र व्यक्ति जो) बाहर के सब आनंद करने के स्त्रोत, साधन और भावना को बाहर करता है। और नेत्रों की दृष्टि को (ध्यान को) भौंहे (eyebrow) के बीच में (स्थित करके) नासिका में चलने वाली अन्दर और बाहर आने जाने वाली सांस को बराबर करता है। (अर्थात प्राणायम करता है या ध्यान लगाता है।) जो वश में रखता है अपने आनंद का अनुभव करने वाले अंगो को। (और) मन और बुद्धि को (अपनी चाह और सोच को)। वह व्यक्ति पवित्र और पूज्य व्यक्ति है। उसके पापों को ईश्वर क्षमा करेगा। जो व्यक्ति अपने आनंद का अनुभव करने की इच्छा, डर, क्रोध को वश में करता है, नि:संदेह वह सदा के लिए नर्क से मुक्त हो जाता है।

नोट

पवित्र कुरआन में ईश्वर ने कहा, "वह जो हमारी आयतों पर ईमान लाए (ईश्वर में श्रद्धा को अपनाया) और आज्ञाकारी रहे। (उनसे ईश्वर कहेगा), प्रवेश करो स्वर्ग में तुम भी और तुम्हारे जोड़े भी (अर्थात पती-पत्नी) हर्षित होकर। उनके आगे सोने की थालियाँ और प्याले गर्दिश करेंगे (सामने रखें जाएँगे) और वहाँ वह सब कुछ होगा, जो दिलों को भाए और आँखे जिससे लज्ज़त (स्वाद) पाएँ। और तुम उस स्वर्ग में सदैव रहोगे। यह वह स्वर्ग है जिसके तुम वारिस (उत्तराधिकारी) हो, उन सत्कर्मों के बदले में है जो सत्कर्म तुम करते रहे। तुम्हारे लिए वहाँ बहुत से स्वादिष्ट फल है जिन्हें तुम खाओगे। नि:संदेह अपराधी लोग सदैव नरक की यातना में रहेंगे। वह (यातना) कभी उन पर से हल्की (कम) न होगी और वे उसी में निराश पड़े रहेंगे। हमने उन पर कोई जुल्म नहीं किया, परन्तु वे खुद ही जालिम (पापी) थे। वे पुकारेंगे, “ऐ मालिक! हमारे ईश्वर, हमारा काम ही तमाम कर दे (हमें मृत्यु दे दे)। ईश्वर कहेगा, “तुम्हें तो इसी दशा में रहना है। निश्चय ही हम तुम्हारे पास सत्य लेकर आए, किन्तु तुम में से अधिकतर लोगों को सत्य प्रिय नहीं।" (सूरे अज-जुखरुफ-४३, आयत ६९-७८)