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विषय नं. 37 - नरक से कोन बचेगा?



अध्याय नं. 6 ,श्लोक नं. 40
श्लोक

श्रीभगवानुवाच पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते । न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ॥40॥

श्री भगवान उवाच, पार्थ न एव इह न अमुत्र विनाशः तस्य विद्यते । न हि कल्याण-कृत् कश्चित् दुर्गतिम् तात गच्छति ।।४०।।

शब्दार्थ

( श्री भगवान उवाच) ईश्वर ने कहा, (पार्थ) हे अर्जुन! (न इह) न इस संसार में (एवं) और (न अमुत्र) न अन्य लोक में (तस्य) (सत्य कर्म करने वाले ) व्यक्ति का (विनाश ) विनाश (विद्यते) होता है। (तात) मेरे प्यारे (अर्जुन) (कल्याण कृत्) लोगों का कल्याण करने वाला व्यक्ति (हि) नि:संदेह (कश्चित) कभी (दुर्गतिम्) नरक के स्थान को (न) नहीं (गच्छति) पाता।

अनुवाद

ईश्वर ने कहा, हे अर्जुन! न इस संसार में और न अन्य लोक में (सत्य कर्म करने वाले ) व्यक्ति का विनाश होता है। मेरे प्यारे (अर्जुन) लोगों का कल्याण करने वाला व्यक्ति निःसंदेह कभी नरक के स्थान को नहीं पाता।

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा है कि, “जिस किसी ने अच्छा कर्म किया, पुरुष हो या स्त्री, यदि वह ईमान पर है (एक ईश्वर में श्रद्धा रखता है) तो हम उसे अवश्य अच्छा जीवन प्रदान करेंगे और हम उनके सत्कर्म का बदला उन्हें अवश्य देंगे।” (सुरे-अन-नहल-१६, आयत-९७)