देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।
ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते ।।14।।
देव द्विज गुरु प्राज्ञ पूजनम् शौचम् आर्जवम् ।
ब्रह्मचर्यम् अहिंसा च शारीरम् तपः उच्यते ।।१४।।
(उच्यते) ईश्वर कह रहा है कि (देव) ईश्वर (का) (गुरु) गुरु (का) (प्राज्ञ) ज्ञानियों का (पूजनम्) आदर करना (शौचम्) स्वच्छ रहना (आर्जवम्) सरलता के साथ ( ब्रह्मचर्यम्) ईश्वर के आदेश अनुसार जीवन व्यतीत करना (अहिंसा) हिंसा से दूर रहना (शारीरम्) (यह ) शरीर का (तपः) तप: है।
अनुवादईश्वर कह रहा है कि, ईश्वर (का), गुरु का, ज्ञानियों का आदर करना। स्वच्छ रहना, सरलता के साथ ईश्वर के आदेश अनुसार जीवन व्यतीत करना । हिंसा से दूर रहना यह शरीर का तप है।
नोटपवित्र कुरआन में हिंसा के विरुद्ध निम्नलिखित आयत है। ईश्वरने पवित्र कुरआन में कहा है कि, हमने इस्रराईल की सन्तानों के लिए (यहूदीयो के लिए) लिख दिया था कि जिसने किसी व्यक्ति को किसी के खून का बदला लेने या धरती में फसाद फैलाने लेने या धरती में फसाद फैलाने के अतिरिक्त किसी और कारण से मार डाला तो मानो सारे ही इन्सानों की हत्या कर डाली। और जिसने उसे जीवन प्रदान किया उसने मानो सारे इन्सानों को जीवन दान किया। उनके पास हमारे रसूल (मुहम्मद साहब) स्पष्ट प्रमाण (पवित्र कुरआन) ला चुके हैं, फिर भी उनमें बहुत से लोग धरती में अत्याचार करने वाले ही हैं। (सूरह अल माएदा-५, आयत ३२)