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विषय नं. 42 - सुख शांति का मार्ग्य



अध्याय नं. 5 ,श्लोक नं. 21
श्लोक

बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम् । स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते ॥21॥

ब्राह्म-स्पर्शेषु असक्त आत्मा विन्दति आत्मनि यत् सुखम् । सः ब्रह्म योग युक्त आत्मा सुखम् अक्षयम् अनुते ।। २१ ।।

शब्दार्थ

(ब्राह्म-स्पर्शेषु) आनंद देने वाली प्राकृतिक वस्तु ( असक्त-आत्मा) में रुचि न रखने वाला (व्यक्ति) (आत्मनि) अपने अंदर ( यत्-सुखम् ) जो (सात्विक) सुख है। (विन्दति) उसका अनुभव करता है। (सः) वह (व्यक्ति जो) (ब्रह्मः योग) ईश्वर की प्रार्थना में (युक्तः आत्मा) लगा हुआ व्यक्ति है (वह मृत्यु के बाद भी) (अक्षयम्) अनंत (सुखम् ) सुख का ( अनुते ) अनुभव करेगा (आनंद लेगा)।

अनुवाद

आनंद देने वाली प्राकृतिक वस्तु में रुचि न रखने वाला व्यक्ति अपने अंदर जो सात्विक सुख है उसका अनुभव करता है। वह (व्यक्ति जो) ईश्वर की प्रार्थना में लगा हुआ व्यक्ति है (वह मृत्यु के बाद भी) अनंत सुख का अनुभव करेगा (आनंद लेगा)।

नोट

ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा, “सुन लो! ईश्वर की याद (स्मरण) से दिलों को सन्तोष (शांति) प्राप्त होता है।" (सूरे-अर-रअद- (१३) आयत-२८)