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विषय नं. 42 - सुख शांति का मार्ग्य



अध्याय नं. 6 ,श्लोक नं. 17
श्लोक

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ॥17॥

युक्त आहार विहारस्य युक्त चेष्टस्य कर्मसु । युक्त स्वप्न-अवबोधस्य योगः भवति दुःख हा ।।१७।।

शब्दार्थ

( युक्त आहार विहारस्य) ईश्वर के आदेश अनुसार भोजन करना और जीवन व्यतीत करना (युक्त चेष्टस्य कर्मसु) ईश्वर के आदेश अनुसार प्रयत्न और कर्म करना ( युक्त स्वपन अवबेधस्य) ईश्वर के आदेश अनुसार सोना और जागना (योग भवति) (यही ईश्वर की) प्रार्थना है। (दुःख-हा) (और) यही सभी दुखों से मुक्ति पाने का उपाय है।

अनुवाद

ईश्वर के आदेश अनुसार भोजन करना और जीवन व्यतीत करना । ईश्वर के आदेश अनुसार प्रयत्न और कर्म करना । ईश्वर के आदेश अनुसार सोना और जागना । (यही ईश्वर की) प्रार्थना है। (और) यही सभी दुःखों से मुक्ति पाने का उपाय है।