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विषय नं. 42 - सुख शांति का मार्ग्य



अध्याय नं. 10 ,श्लोक नं. 9
श्लोक

मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् ।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च॥9॥

मतचित्ताः मत् गत -प्राणाः बोधयन्तः परस्परम् ।
कथयन्तः च माम् नित्यम् तुष्यन्ति च रमन्ति च ।।९।।

शब्दार्थ

(मत चित्ताः) (वह जो) हमेशा मुझे अपने मन में रखते है। (मत) (और) मुझे (प्राण) अपने जीवन (मत) (का) लक्ष्य बनाते हैं। (च) और ( बोधयन्तः) धार्मिक ज्ञान ग्रहण ( प्राप्त करके) (परस्परम् ) वह एक दूसरे से (माम् ) मेरी महानता का ( कथयन्तः) कथन करते हैं (नित्यम) (ऐसे लोग) सदैव (तुष्यन्ति ) सन्तुष्ट (च) और (रमन्ति) दिव्य आनंद अनुभव करते हैं।

अनुवाद

वह जो हमेशा मुझे अपने मन में रखते हैं। और मुझे अपने जीवन का लक्ष्य बनाते हैं। और धार्मिक ज्ञान ग्रहण ( प्राप्त करके) वह एक दूसरे से मेरी महानता का कथन करते हैं। ऐसे लोग सदैव सन्तुष्ट और दिव्य आनंद अनुभव करते हैं।