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विषय नं. 42 - सुख शांति का मार्ग्य



अध्याय नं. 12 ,श्लोक नं. 7
श्लोक

तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात् ।
भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम् ॥

तेषाम् अहम् समुद्धर्ता मृत्यु संसार सागरात् ।
भवामि न चिरात पार्थ मयि आवेशित चेतसाम् || ७ ||

शब्दार्थ

(पार्थ) हे पार्थ (अर्जुन) (मयि) (जो लोग) मुझमें (चेतसाम्) अपनी सोच को (आवेशित) स्थित रखने वाले हैं (तेषाम् ) उन लोगों को (अहम्) में (मृत्युसंसार) मृत्यु वाले (कष्टवाले) सांसारिक जीवन के (सागरात्) समुद्र में (चिरात्) अधिक समय तक (न) नही (रहने देता) और (समुद्धर्ता) बहुत जल्द (भवामि) मुक्ति दे देता हूँ (कष्ट से और जीवन में सुख शान्ति प्रदान करता हूँ ।

अनुवाद

हे पार्थ (अर्जुन), (जो लोग) मुझमें अपनी सोच को स्थित रखने वाले हैं, उन लोगों को मैं मृत्यु वाले (कष्टवाले) सांसारिक जीवन के समुद्र में अधिक समय तक नहीं (रहने देता)। और बहुत जल्द मुक्ति दे देता हूँ (कष्ट से, और जीवन में सुख शान्ति प्रदान करता हूँ)।