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विषय नं. 43 - सुख शांति का मार्ग्य



अध्याय नं. 8 ,श्लोक नं. 3
श्लोक

श्रीभगवानुवाच
अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते ।
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः ॥3॥

श्री भगवान उवाच,
अक्षरम् ब्रह्म परमम् स्वभावः अध्यात्मम् उच्यते।
भूत-भाव- उद्भव-करः विसर्गः कर्म संज्ञितः ॥3॥

शब्दार्थ

(श्री भगवान उवाच) ईश्वर ने कहा, (परमम् ) महान (अक्षरम्) अविनाशी (ॐ) को (ब्रह्म) ब्रह्म (ईश्वर) (उच्यते) कहते हैं। (स्वभावः) मनुष्य का अपना जो स्वभाव (व्यक्तीत्व) है उसे (अध्यात्मम्) आत्मा कहते हैं। (भूत) प्राणियों के (भाव) स्वभाव की (उद्भव) रचना करना और (करः) (उन्हें उनके प्राकृतिक जीवन के) कर्म (उनको) (विसर्गः) प्रदान करना (कर्म) (इसे ईश्वर का) कर्म (संज्ञितः) कहा जाता है।

अनुवाद

ईश्वर ने कहा, महान अविनाशी (ॐ) को ब्रह्म (ईश्वर) कहते हैं। मनुष्य का अपना जो स्वभाव (व्यक्तीत्व) है उसे आत्मा कहते हैं। प्राणियों के स्वभाव की रचना करना और (उन्हें उनके प्राकृतिक जीवन के) कर्म (उनको) प्रदान करना (इसे ईश्वर का) कर्म कहा जाता है।

नोट

1.पवित्र कुरआन की एक सूरह इस प्रकार है। कहो, “वह ईश्वर यकता है (एक है)” ईश्वर निपेंक्ष (और सर्वधार) है, न वह जनिता है और न जन्म (अर्थात न वह पैदा हुआ और न इसको सन्तान है) और न कोई उसका समकक्ष है। (सूरह इवलास- ११२, आयत- १-३) 2.अक्षर का अर्थ है अविनाशी। ईश्वर अविनाशी है। 'अक्षर' (शब्द) को भी कहते हैं। (संस्कृत हिन्दी शब्दार्थ कोश पं. ईश्वरचंद्र पेज नं. ८) श्लोक नं. १७.२३ में ईश्वर के तीन नामों का वर्णन है। उसमें एक ॐ है। ॐ यह भी केवल दो अक्षर है। इस प्रकार अक्षर का अर्थ हुआ अविनाशी ईश्वर जिसका नाम ॐ है।