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विषय नं. 43 - मनुष्य के 3 प्राकार के स्वभाव



अध्याय नं. 14 ,श्लोक नं. 6
श्लोक

तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम् ।
सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ ॥6॥

तत्र सत्वम् निर्मलत्वात् प्रकाशकम् अनामयम् ।
सुख सडेगन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन च अनघ ।।६।।

शब्दार्थ

(अनघ) हे पापरहित (अर्जुन) (तत्र) उस (ईश्वर की ओर से प्रदान किए गए गुणों में जो) (सत्वम्) सत्वगुण है (निर्मलत्वात्) वह पवित्र करने वाला (प्रकाशकम्) प्रकाशित करने वाला (अनामयम्) (मनुष्य को) पापों से मुक्त रखने वाला (गुण है ) (ज्ञान) (कारण कि यह) धार्मिक ज्ञान (सङ्गेन) के साथ (बध्नाति) मनुष्य को बाँधकर (सुख) सुख शान्ति से (सडेन) जोड़ देता है।

अनुवाद

हे पापरहित (अर्जुन)! उस (ईश्वर की ओर से प्रदान किए गए गुणों में जो) सत्वगुण है वह पवित्र करने वाला, प्रकाशित करने वाला, (मनुष्य को) पापों से मुक्त रखने वाला (गुण है)। (कारण कि यह) धार्मिक ज्ञान के साथ मनुष्य को बाँधकर सुख-शान्ति से जोड़ देता है।