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विषय नं. 43 - मनुष्य के 3 प्राकार के स्वभाव



अध्याय नं. 14 ,श्लोक नं. 8
श्लोक

तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम् । प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत ॥8॥

तमः तु अज्ञान- जम् विद्धि मोहनम् सर्व देहिनाम् प्रमाद आलस्य निद्राभिः तत् निबध्नाति भारत ।।८।।

शब्दार्थ

(तु) किन्तु (तमः) तमो गुण (अज्ञान) अज्ञान से (जम्) उत्पन्न होती है। (भारत) हे अर्जुन (विद्धि) (इस बात को) समझ लो कि (सर्व) सम्पूर्ण ( देहिनाम्) देहधारी मनुष्य ( मोहनम् ) (इसी गुण के कारण) भ्रम में हैं। (तत) यह (गुण मनुष्य को ) ( प्रमाद) लापरवाही (आलस्य) आलस (सुस्ती) (निद्रभी) (और) निद्रा से (निबध्नाति) बाँध देता है।

अनुवाद

किन्तु तमो गुण अज्ञान से उत्पन्न होती है। हे अर्जुन! ( इस बात को) समझ लो कि सम्पूर्ण देहधारी मनुष्य (इसी गुण के कारण) भ्रम में हैं। यह गुण मनुष्य को लापरवाही, आलस (सुस्ती) और निद्रा से बाँध देता है।